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राष्ट्रमंडल खेलों ( Commonwealth Games) के बारे में रोचक तथ्य

राष्ट्रमंडल 53 स्वतंत्र देशों का एक संघ है | इस संघ के सारे राज्य अंग्रेजी राज्य का हिस्सा थे  ( मोज़ाम्बीक  और स्वयं यूनाइटेड किंगडम  को छोड़ कर)। राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में कुछ रोचक तथ्य 1.  वर्ष 1928 में  कनाडा  के एक प्रमुख एथलीट बॉबी रॉबिन्सन को प्रथम राष्ट्र मंडल खेलों के आयोजन का भार सौंपा गया। ये खेल 1930 में हेमिल्टन शहर, ओंटेरियो, कनाडा में आयोजित किए गए और इसमें 11 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा‍ लिया। 2.  द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इनका आयोजन नहीं किया गया था। 3.  इन खेलों के अनेक नाम हैं जैसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स, फ्रेंडली गेम्स और ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स। वर्ष 1978 से इन्हें सिर्फ कॉमनवेल्थ गेम्स या राष्ट्रमंडल खेल कहा जाता है। 4. भारत ने पहली बार 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों की मेजवानी की थी | ये 19 वां राष्ट्रमंडल खेल था और इसका आयोजन 3-14 अक्टूबर 2010 के बीच दिल्ली में किया गया था | 5. भारत का राष्ट्रमंडल खेलों में सबसे अच्छा प्रदर्शन दिल्ली में आयोजित खेलों के दौरान रहा था जिसमें भारत ने कुल 101 मेडल जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया था | 6. भारत ने
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जानिए भारतीय ड्राइविंग लाइसेंस से किन-किन देश में गाड़ी चला सकते हैं

भारत में टू व्हीलर्स और फॉर व्हीलर्स को चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस की जरूरत पड़ती है | क्या आपको पता है कि आप भारत के ड्राइविंग लाइसेंस की मदद से विदेशों में भी ड्राइविंग कर सकते हैं | हालाँकि सड़क के नियम उसी देश के मानने पड़ेंगे जहाँ आप गाड़ी चला रहा रहे हैं | इस लेख में हम ऐसे ही देशों के बारे में बता रहे हैं जहाँ पर आप भारत के ड्राइविंग लाइसेंस की मदद से 3 माह से लेकर 1 साल तक गाड़ी चला सकते हैं | 1. ऑस्ट्रेलिया अगर आपके पास एक वैध भारतीय लाइसेंस है जो की अंग्रेजी में है, तो आप 3 महीने तक क्वीन्सलैंड, न्यू साउथ वेल्स, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी क्षेत्र और ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र में गाड़ी चला सकते हैं | यहाँ इंटरनेशनल ड्राइविंग लाइसेंस की भी जरुरत होती है | 2. अमेरिका अगर आपके पास एक वैध भारतीय लाइसेंस है जो की अंग्रेजी में है, तो आप अमेरिका में 1 साल तक गाड़ी चला सकते हैं | यदि आपका ड्राइविंग लाइसेंस अंग्रेजी में नही है तो आपको अन्तर्राष्ट्रीय ड्राइविंग परमिट के साथ फॉर्म I-94 की कॉपी भी अपने साथ रखनी होगी | 3. जर्मनी अगर आपके पास एक वैध भारतीय लाइसेंस है जो की अ

भारत का एक ऐसा स्कुल जहाँ बच्चे दोनों हाथों से लिखते हैं

दुनिया की लगभग 90 प्रतिशत आबादी लिखने के लिए अपने दाहिने हाथ (राईट हैण्ड) का प्रयोग करती है जबकि मात्र 10 प्रतिश्त लोग ही अपने बाए हाथ (लेफ्ट हैण्ड) इस्तेमाल करते हैं परंतु क्या आपने कभी ऐसे प्रतिभाशाली लोगो को देखा है जो लिखने में अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करते हैं | इस लेख में हम ऐसे ही लोगो की बात करने जा रहे है जिनकी संख्या पूरी दुनिया में मात्र 1 प्रतिशत ही है | ऐसी ही कौशल शक्ति रखने वाले कुछ छात्र भारत में भी है जो की विना वादिनी विद्यालय, मध्यप्रदेश में स्थित सिंगरौली नामक जगह पर पढ़ते हैं | 8 जुलाई 1999 को एक पूर्व सैनिक वीपी शर्मा ने इस स्कूल  की स्थापना की थी | पूर्व, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के दोनों हाथों से लिखने की कला से प्रभावित होकर उन्होंने इस स्कूल की स्थापना की थी | वीपी शर्मा के अनुसार कक्षा 1 से छात्रों को परीक्षण देना शुरू किया जाता है और जब तक वे कक्षा 3 तक पहुँचते हैं तब तक वे दोनों हाथों से लिखनें में सहज महसूस करते हैं और कक्षा 7 और 8 के छात्र गति और सटीकता के साथ लिख सकते हैं | ये छात्र दो लिपियों को भी एक साथ लिख सकते हैं | डॉ राजेंद्र प्रसाद, लि

गंगोत्री

गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान हैं | गंगोत्री  मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है |  यह स्थान  उत्तरकाशी  से 100 किमी की दूरी पर स्थित है |  गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था |  गंगोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोलते है और  दीपावली  के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है।  गनोत्री मंदिर जब सर्दी प्रारंभ होती है, देवी गंगा अपने निवास स्थान मुखबा गांव चली जाती है | वह अक्षय द्वितीया के दिन वापस आती है |  इस समय बर्फ एवं ग्लेशियर का पिघलना शुरू हो जाता है तथा गंगोत्री मंदिर पूजा के लिए खुल जाते हैं। देवी गंगा के गंगोत्री वापस लौटने की यात्रा को पारम्परिक रीति-रिवाजों, संगीत, नृत्य, जुलुस तथा पूजा-पाठ के उत्सव के साथ मनाया जाता है | पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 व

केदारनाथ

केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्तिथ है | उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में  केदारनाथ मन्दिर  बारह ज्योतिर्लिंग  में सम्मिलित होने के साथ  चार धाम  और  पंच केदार  में से भी एक है |  केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा है | वर्तमान मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था | यह 3,581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और सोनप्रयाग से 21 किलोमीटर की दूरी पर है। नवंबर के महीने में सर्दियों के आने पर, भगवान शिव की पवित्र मूर्ति, केदारनाथ से उखीमठ ले जाते है, और मई के पहले हफ्ते में केदारनाथ में पुन: स्थापित की जाती है | यह मंदिर कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के पहले दिन बंद हो जाता है और हर साल वैशाख (अप्रैल-मई) में फिर से शुरू होता है | केदारनाथ हिंदू भक्तों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ यात्राओं में से एक है। यह मंदाकिनी नदी के मुख में गढ़वाल हिमालय की पहाड़ियों के बीच स्थित है | पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत  के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे | इसके लिए वे  भगवान शंकर  का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों स

बद्रीनाथ मंदिर

बद्रीनाथ मंदिर जिसे बद्रीनारायण मंदिर भी कहते हैं, उत्तराखण्ड राज्य में स्थित हैं |  यह मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले की गढ़वाल पहाड़ी पर स्थित है, जो समुद्रतल से 3,133 मीटर (10,295 फीट) की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है | यह मंदिर विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देसमों में से भी एक हैं | ऋषि केश  से यह 295 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है |  ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं |   यह मंदिर भगवान  विष्णु  के रूप बदरीनाथ को समर्पित है |  यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है |  यहाँ वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है |  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई | इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना | भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था | बद्रीनाथ मंदिर पौराणिक कथाओं औ

यमुनोत्री : चार धाम का पहला पड़ाव

यमुनोत्री उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 3235 मी. की ऊँचाई पर स्तिथ देवी यमुना का एक मंदिर है | चार धामों में से एक धाम यमुनोत्री से यमुना का उद्गम मात्र एक किमी. की दुरी पर है |  यहां बंदरपूंछ चोटी (6315 मी) के पश्चिमी अंत में फैले यमुनोत्री ग्लेशियर को देखना अत्यंत रोमांचक है |  गढ़वाल हिमालय की पश्चिम दिशा में उत्तरकाशी जिले  की राजगढी(बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से 251 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से 131 किलोमीटर पश्चिम -उत्तर में 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित  यमुनोत्री चार धाम का पहला पड़ाव है | यमुनोत्री के यहाँ यमुना नदी अक्षय तृतीय के पावन पर्व पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली के पावन पर्व पर बंद हो जाते हैं | यमुनोत्री मंदिर के आसपास के क्षेत्र में गर्मजल के अनेकों स्त्रोत हैं | यह स्त्रोत अनेक कुंडों में गिरते हैं, इन कुंडों में सबसे सुप्रसिद्ध कुंड सूर्यकुंड हैं | भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपड़े की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है | देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में